(99+) Amazing Kabir Ke Dohe In Hindi | कबीर दास के वीडियो के साथ |

Introduction

नमस्ते दोस्तों आज हम आपके लिए एक बडीही खास ऑड प्यारी ब्लॉग पोस्ट लेकर आ चुके है जिसका नाम है Kabir das के दोहे दोस्तों श्रीमान कबीर दास जी भारत में एक बड़ेही मशहूर संत थे उन्होंने अपने जीवन को समाज की भलाई और समृद्धि के लिए लगा दिया था. श्रीमान कबीर दास जी संत के साथ साथ एक कवि भी थे वो अक्सर अपने खाली समय में कविताएं लिखा करते थे और जिन्हें आजकल हम कबीर के दोहों से जानते है. 

दोस्तो इनके उस वक्त के लिखी हुई कवितायें हमारी आजकल की मुश्किलों जटिल से जटिल मुश्किल का समाधान करने का सामर्थ्य रखती है, दोस्तों इनकी कविताएं/दोहें हमें हमेशा अच्छाई के रास्ते पर चलने को प्रोत्साहित करते हैं. श्रीमान कबीर दास जी हमारे सिख समुदाय में बहोत ज्यादा लोकप्रिय है क्योंकि उन्होंने सीख लोगों के धार्मिक ग्रंथ "आदि ग्रंथ" को लिखने में भी अपना सहयोग दिया है. दोस्तों इनके निजी जीवन के बारे में बात करें तो "ऐसा कहा जाता है कि" कबीर दास का जन्म १४५५ वाराणसी में हुआ था जो कि आजके भारत के अनुसार उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित है. 

ऐसा कई लोग मानते है लेकिन एक वर्ग के लोग है जो कि इनका जन्म काशी में मानते है. दोस्तों श्री कबीर दास जी के माता पिता के बारे में कहें तो इनके माता पिता के बारे में कोई भी व्यक्ति नहीं जानता क्योंकि इनका जन्म काफी सदियों पहले हुआ था इसलिए इनके जीवन के बारे में कुछ ठोस सबूत अबतक हमें नहीं मिले है. 

लेकिन कुछ लोग कहते है कि उन्हें एक मुस्लिम समाज में से एक दंपती ने पाला जिन्हें नीरू और नीमा कहते है दोस्तों अब ये बात कितनी सच है और कितनी झूठ है ये तो कहना काफी ज्यादा मुश्किल है क्योंकि कई लोगों के पास कई तरह के तर्क होते है जो कि सुनने में हमें सही लगते है. लेकिन इनपर भरोसा करना मुश्किल है क्योंकि यह सिर्फ ओ सिर्फ तर्क है.

फिर जैसे ही कबीर दास जी अपने बचपन को जीने लेजे तभी से उनका झुकाओ साहित्य की और रहा है दोस्तों जब कबीर दास 9 साल के थे कबीर के दोहों ने लोगों के दिलों को जितना शुरू कर दिया था फिर ऐसे समाज को नई नई सिख देने वाले दोहों को लिखते लिखते ही कबीर दास जी का बचपन गुजर गया. 

Ansune Kabir ke dohe hindi mai

थोड़ा रुकरुक ले मना, सबकुछ रुकरुकर होय, बाग का माली सींचे सौ घड़ा, फल तभी आये जब ऋतु का आगमन होय.

हिदी में अनुवाद :- श्रीमान कबीर दास जी इस पंक्ति में यह कहना चाहते है कि किसी भी कार्य को उचित ढंग से पूर्ण होने के लिए सही समय की जरूरत होती है, जैसे कि चंदन के वृक्ष को भी सुगंध देने के लिए एक उचित समय की आवश्यकता होती है, समय से पहले कुछ नही होता इसी के कारण हमें जीवन में हमेशा धैर्य रखना चाहिए और अपने कामों के प्रति निष्ठावान रहना चाहिए, इसी वाक्य को विस्तार में समझाने के लिये कबीर दास जी कहते है कि अगर किसी बाग का माली किसी एक पेड़ को सौ घड़ें पानी दे तब भी उस पेड़ पर विशिष्ट ऋतु आने पर ही फल उगेंगे इसलिए हमें जीवन में हमेशा धैर्य रखना चाहिए.

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कबिभी जाती मत पूछो किसी साधु संत की, उनसे हमेशा लेते रहो ज्ञान, मोल करो तलवार का, कही पर पड़ा रहने दो मयान.

हिंदी मैं अनुवाद :- इंसान के अंदर के ज्ञान मूल्य किसी भी जाति धर्म से ऊपर है इसलिए हमें हमेशा इन जाती धर्मों की बेड़ियों को तोड़कर हमेशा उस व्यक्ति के ज्ञान को पहचान कर उसकी कदर करनी चाहिए. श्रीमान कबीर दास जी इसी वाक्य को एक उदाहरण के साथ समझाते है, हमें मुसीबत के समय हमेशा एक तलवार काम आती है ना की उसको तलवार को ढकने वाली मयान, ठीक उसी तरह बुरे समय मैं हमें किसी व्यक्ति का ज्ञान काम आता है नाकि उसकी धर्म और जाति.

जो तिनका कभू ना निंदिये, जो कभी पावन होय, कहबुन उड़ी आँखिन पड़े, ठीक तब ही पीर घनेरी होय.

हिंदी मैं अनुवाद :- इस पंक्ति में श्रीमान कबीर दास जी कहना चाहते है कि हम सबके बोझ तले जो एक तिनका दबा हुआ है हमें जीवन में कबिभी उसकी बुराई नहीं करनी चाहिए, क्योंकि अगर वो कुछ कारणवर्ष आपकी आँखों प्रवेश कर गया तो वो बहोत बड़ी पीड़ा का कारण बन सकता है. अगर इस वाक्य को संक्षेप्त में समझें तो कबीर दास जी कहना चाहते है कि हमें सभी छोटे बड़े का सन्मान करना चाहिए क्योंकि अगर कोई छोटी सी चीज भी उसकी सही जगह पर पहुंच गई तो वो कइयोंको विनाश का कारण बन सकती है.

जीवन में कभी लूट सकोगे तो जरूर लूट ले, ईश्वर और आध्यत्म के नाम की लूट, बादमें फिर पछताओगे, जब खुदके प्राण जायेंगे छूट.

हिंदी में अनुवाद :- इस पंक्ति में श्री कबीर दास जी कहना चाहते है कि जब तक प्राण है तब तक हमें ईश्वर की पूजा आराधना करो और अगर नहीं करते तो तुम्हें प्राण जाने के बाद पछताना पड़ेगा.

कबीर के दोहे
कबीर का दोहा
काम कल करे सो आज कर, और आज करेसो अब, कुछ ही पलों में प्रलय का आगमन होगा, बचे कामों को करेगा कब.

हिंदी में अनुवाद :- दोस्तों इस पंक्ति में श्री कबीर दास जी हमें समय का महत्व समझाते है और कहते है की. जो कार्य तुम्हारे नसीब में लिखा हुआ है और जिसे तुम कल के लिए टाल रहे हो उसे आज के आज ही पूर्ण करो और जिस कार्य को तुम आज के लिए टाल रहें हो उस कार्य को अभी के अभी पूर्ण करो तुम्हारा जीवनकाल कुछ पलों में ही खत्म हो सकता है फिर तुम इतने सारे कार्यों को कब करोगे.

संक्षिप्त में :- इसको अगर शॉर्ट यानी संक्षिप्त में कहें तो इसका अर्थ है कि हमें हमारे सभी कार्यों को उनके निर्धारित समय पर पूरा कर देना चाहिए नाकि उन्हें बस टालते रहना चाहिए.

इस इमेज में हमने कबीर के दोहों को जोड़ा है जो हिंदी मैं है.
कबीर दास के दोहे
ईश्वर मुझे बस उतना दीजिए, जिसमें मेरे परिवार की खुशियां समाये, जीवन में कभी में भी भूखा न रहु, दरवाजे पर आया साधु भी कभी खाली हाथ न जाये.


हिंदी में अनुवाद
:- इस दोहे में श्रीमान कबीर दास जी कहते है कि ए भगवान मुझे जीवन में उतनी ही धन संपत्ति और बाकी चीजें दो जिसमें मेरे करिबियोंका और मेरे परिवार का खुशी से गुजारा हो पाये और जीवन में कभी में भी भूखे पेट न रहूं और दरवाजे पर आने वाला इंसान भी कभीभी खाली हाथ न जा सके.

इस दोहे का संशिप्त में अर्थ :- हमें जीवन में कभी भी अधिक धन को पाने का लोभ मन में उत्पन्न नहीं करना चाहिए हमें भगवान से उतना ही धन की आशा करनी चाहिए जिससे हमारा और हमारे परिवार का सुख और शांति से गुजारा हो सके.

सुख में सतर्क तो सभी लोग रहते है सुख में सतर्क रहें न कोई, जो व्यक्ति सुख और दुख दोनों में सतर्क रहें उसे फुख दे न कोई 

हिंदी भाषा में अनुवाद :- इस दोहे में श्रीमान कबीर दास जी कहना चाहते है कि जब कभीभी हम किसी मुसीबत में या किसी दुख में होते है हम तभी से हम सतर्कता की राह पर चलतें है और खुदकी हालत को देखकर खुदका और भी अच्छे से ख्याल रखते है इसी दोहे को समझताते हुए कबीर दास जी कहते है कि अगर हम अपने जीवन के हर अच्छे पल में खुदको सतर्क रखते है तो हमारे जीवन में कबिभी बुरा समय और दुख नहीं आएगा.

इस दोहे का अर्थ संक्षेप्त में :- हमें जीवन में हमेशा सतर्क रहना चाहिए क्योंकि असतर्कता ही कई बार हमारे दुख का कारण बनती है.

किसी को ज्यादा बोलने ना भला किसी के सामने ज्यादा समय की भली न चुप्पी, ज्यादा अच्छा नहीं है बरसना, ज्यादा अच्छी नहीं है धूप.
इस दोहे का हिंदी में अनुवाद :- इस दोहे को ठीक से समझाने के लिए कबीर दास जी एक उदाहरण देते हुए कहते हैं की जिसतरह एक वृक्ष को ठीक से विकसित होने के लिए ज्यादा बारिश और ज्यादा धूप ये दोनों चीजें हानिकारक होती है ठीक उसी तरह हमारे जीवन में हमें ठीक से सफल बनने के लिए नाही ज्यादा बोलना ठीक होता है और नाही किसी के सामने ज्यादा चुप रहना ठीक होता है,

संक्षिप्त में :- हमारे शब्द बहोत ज्यादा अनमोल होते है ये हमारी बिड़गी हुई चीजों को बना सकते है और बनी हुई चीज़ को बिगाड़ने की क्षमता रखते है, और इसीतरह हमारी चुप्पी भी बड़ी खतरनाक साबित हो सकती है क्योंकि अगर हम किसी अत्याचारी के जुल्म सहते रहे तो वो चुप्पी हमारे लिए बहोत बड़ी समस्या बन सकती है. इसलिए हमें हमारी चुप्पी को कब तोड़ना चाहिए और कब बनाये रखना चाहिए ये सीखना चाहिए.

Hindi mai sabse anokhe kabir das ke dohe
KAbir das ke anokhe dohe 

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बुराई को खोजने में चला ढूंढने पर बुरा मिला न कोई, और जब दिल में झांककर देखा अपने तो मुझसे बुरा न कोई.

इस दोहे का अर्थ हिंदी में :- इस पंक्ति के द्वारा श्रीमान कबीर दास जी हमें समझाते है की बुरे व्यक्ति और व्यक्ति के अंदर की बुराई के बारे में हमें समझताते है, कबीर दास जी कहते है कि जब मैं इस सृष्टि में बसे हुए लोगों में छिपी हुई बुराई को निकला तो मुझे इस दुनिया में एक व्यक्ति को भी नहीं ढूंढ पाया और जब थक हार कर मैन खुदके अंदर देखा तो तब मुझे समझ मे आया कि इस दुनिया में मुझसे बुरा कोई व्यक्ति नहीं था, इस दोहे को और भी बारीकी से समझें तो कबीर दास जी कहना चाहते है कि हमें किसी दूसरे की बुराई को देखकर कभीभी कोई राय नहीं बनानी चाहिए बल्कि खुदके अंदर झांक कर देखना चाहिए.

साधु ऐसा चाहिए जैसा जो समाज में शांति सुघाय, सारः सारः को गही रहें, गंदगी देइ उड़ाये.

कबीर दास के इस दोहे का अर्थ हिंदी मैं :- इस दोहे के द्वारा कबीर दास जी कहना चाहते है कि हमारे इस समाज को ऐसे महापुरुष की आवश्यकता है जिसका व्यक्तित्व अनाज को अच्छे से साफ करने वाले सुप की तरह हो इंसानों में बची हुई इंसानियत को जगाते हुए वो समाज से सभी नकारात्मक और गंदगी को हटा सके.

संशिप्त में  इस दोहे का अर्थ :- हमें एक ऐसे साधु संत की खोज करनी चाहिए जो सच्चाई और अच्छाई दुनिया में बिखेरे और नकारत्मकता और बुराई को समाज से हटा सके.

पोथी पढ़ी जग मुआ, पंडित हुआ न कोय, जब पढ़ें ढाई अक्षर प्रेम के तब जाके पंडित होय.

कबीर दास के इस दोहे का हिंदी मैं अर्थ :- इस दोहे के द्वारा कबीर दास जी हमें प्यार का महत्व समझाते हुए कहते है कि इस दुनिए में सभी लोग ज्ञानी बनने के लिए बहोत बड़ी बड़ी किताबों को पढ़ते है लेकिन बड़ी बड़ी किताबों को पढ़कर कोई उस स्तर का ज्ञानी नहीं बन सकता जो ढाई अक्षर प्रेम के पढ़कर ज्ञानी बन सकता है इस वाक्य का असल अर्थ यह है कि बड़ी बड़ी किताबों को पढ़कर भी लोग अक्सर प्रेम का अर्थ नहीं समझ पाते इसलिए कबीर दास जी कहते है कि वो ज्ञान किस काम का जो ढाई अक्षर प्रेम के न समझ पाये इस दुनिया में वही असल ज्ञानी वही होता है जो लोगों के अंदर की प्रेम को पहचान सके.

Jivan ki sacchai batane wale sant kabir ke dohe 

पतिव्रता स्त्री मैली भली, जो सुने गले में बस पहने एक कांच की पोत, सभी सखियों में यो दिपै, जो हमेशा चमके जैसे रवि शीश की ज्योत.

हिंदी में अनुवाद :- कबीर दास जी इस दोहे में यह कहना चाहते है कि जो स्त्री असली पतिव्रता होती है उसे इस मोह माया ऐश ओ आराम से कुछ फर्क नहीं पड़ता उसके गले में अगर एक कांच की माला हो और भलेही उसका शरीर धूल मिट्टी से मैला हो लेकिन वो स्त्री उन स्त्रियों के बीच हमेशा चमकती रहती है जिन स्त्रीयों में लोभ और छल कपट की भावनाएं मौजूद होती है.

हिंदी में सारांश :- एक स्त्री की असल पवित्रता पतिव्रता होने में है नाकि अच्छे और रईस दिखने में.

फिर जैसे ही कबीर दास जी बड़े हुए उन्होंने अपने लिए एक गुरु को खोजना शुरू कर दिया उन्हें एक गुरु बड़ेही पसंद थे उनका नाम था स्वामी रामानंद कबीर दास जी उनकी तेज़ बुद्धि और बेशुमार ज्ञान से काफी ज्यादा प्रभावित थे. फिर उन्होंने स्वामी रामानंद को अपना गुरु बनने के लिए कहा तो रामानंद बोले तुम्हें क्या आता है.

तो कबीर को तो दोहे लिखना पसंद था तो फिर कबीर ने कहा कि मैं दोहे और कविताएं लिख लेता हूं तो रामानंद ने कहां की अपने लिखे कुछ दोहे सुनाओ तो कबीर ने उनको कुछ बड़ेही प्यारे दोहे सुनाये और रामानंद जी ने भी बड़े मन लगाकर कबीर दास के दोहों को सुना लेकिन उन्होंने कुछ कारणवर्षकबीर जी को अपना शिष्य बनाने से इनकार कर दिया और कहां की में तुम्हें अपना शिष्य नहीं बना सकता और वो उठकर चले गए लेकिन कबीर जी भी काफी ज्यादा जिद्दी थे उन्होंने भी भविष्य में रामानंद को अपना गुरु बना ही लिया. 

दोस्तों कहा जाता है कि रामानंद के सबसे शिष्य पसंदीदा कबीर दास थे क्योंकि उनमें गज़ब का लिखने का कौशल्य था जिनकी कदर रामानंद को अच्छे से थी रामानन्द अक्सर अपने ध्यान के बाद कबीर के दोहों को सुना करते थे क्योंकि कबीर के दोहे अक्सर उनके मन को शांति दिया करते थे. अब एक नज़र कबीर के दोहे की और भी मार लेते है.

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जग में कोई हमारा नहीं, हम भी काहूं के नाही, पारे पहुंचे नाव जो मिलके बिछुरे जाह,
हिंदी में अनुवाद :- इस दोहे के द्वारा वो इस दुनिया को एक नाव रूप में संभोदित करते हुवे कहते है कि :- इस मोह माया से भरे हुए जग(दुनिया) में हमारा अपना कोई भी नहीं है और हम भी किसी व्यक्ति के नहीं है जब कभी भी ये जीवनरूपी नाव उसके निर्धारित समय पर किनारे पर पहुंचेगी हम सबसे और सब हमसे एकदमसे बिछड़ जायेंगे.

संक्षिप्त में अर्थ :- इस दुनियां में हमारा कोई नही है यहां सिर्फ हमारी आत्मा ओर हमारा शरीर हमारा है एक न एक दिन हर किसी को यहां से जाना है इसलिए जबतक हम जिंदा है हमें अच्छे काम करने चाहिए और मन को शांति देनी चाहिये.

Kabir das ke dohe hindi mai
KAbir das ke sabse anokhe dohe
माटी के नाग पर भक्त बनकर रोज़ मिष्ठान चढ़ाये, जब मासूम जिंदा नाग घर में निकले, बेवजह उसको मारा जाये.

इस पंक्ति अर्थ हिंदी में :- इस दुनिया में सभी के सभी लोग बस भक्ति का झूठा देखावा करते है मतलब वो शिवजी की पूजा अर्चना करने के लिए माटी का सांप बनाते है लेकिन कुछ कारणवर्ष कोई जिंदा साँप इंसानों के घरों में चला आता है तो वही लोग जो खुदको बडाही धार्मिक और ईश्वर का भक्त मानते है वही लोग अक्सर सांप को लाठियों से मार देते है,

इस कबीर के दोहे का सारांश :- असल में ये दोहा हम इंसानों में बसे हुए दोगलेपन को दिखाता है कबीर दास जी इस दोहे के द्वारा हमें कहना चाहते है कि हम ईश्वर की पूजा आराधना कर खुदको, अपनी और लोगोंकी नज़र में अच्छा साबित कर सकते है लेकिन हमें ऐसा न करते हुए खुदमें अच्छे गुणों को लाना चाहिए जिससे लोगों की और खुदकी नज़र मैं हम अपनेआप ही अच्छे हो जायेगे औए जिससे ईश्वर की भी प्राप्ति की जा सकती है.

हर रोज मल धोए अपने गंदे हुए शरीर का, कभी धोए न मन का मैल, सयाना होने नहाये गंगा कावेरी, रहे बैल का बैल.

इस दोहे का अर्थ हिंदी में :- श्रीमान कबीर दास जी इस दोहे के द्वारा हमें ये समझाना चाहते है कि हम इंसान हर रोज अपने शरीर पर लगा हुआ जो मैल है उसे रोज़ रगड़ रगड़कर साफ करते है लेकिन हमारे मन में जो लोगों के लिए मैल है हम उसे कभी साफ नहीं करते. हमें हमारे शरीर के मैल छोड़ कर सबसे पहले हमारे मन के मैल को साफ करना चाहिए. क्योंकि अगर हम दूसरों के लिए गड्ढा खोदते है तो उल्टा हमही उस गड्ढे मैं गिर जाते है, ठीक इसी तरह जैसा हम औरों के बारे में सोचते है हमारे साथ भी ठीक वैसा ही होता है.

अपने मुख से ऐसे शब्दों को निकालिये, सुनकर कोई आपा न खोये, औरण को ठंडा कर, आपहु शीतल होय.

इस दोहे का अर्थ हिंदी में :- इस दोहे में श्रीमान कबीर दास जी हमारे मुख से निकलने वाले शदों का महत्व सहमझाते हुए हमें कहते है कि हमारे मुख से हमें ऐसे शब्दों को बाहर निकालना चाहिए जो दूसरोंको हमेशा प्रसन्नता और अच्छाई की अनुभूति करवाये क्योंकि एक हमारी शब्दवाणी ही होती है जो हमारे बिगड़े हुए कामों को बनाने का सामर्थ्य रखती है.

इस दोहे का अर्थ संक्षेप्त में :- अगर हमें जीवन में कोई भी जंग को जितना चाहते है तो हमारी शब्दवाणी हमारा सबसे बड़ा हतियार बनकर उभर सकती है क्योंकि एकबार को तलवार के वार से हुए जख्म भर सकते है लेकिन किसी के बुरे शब्दों के मन को लगे हुए घाव कभी नहीं भरते इसलिए जीवन मे हमें हमेशा अच्छे और हर किसीके मन को भाने वाले शब्द ही अपने मुख से निकालने चाहिये.     

Sabse lokpriyata bhare sant kabir das ke dohe nayi images ke saath

निदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय.

इस दोहे का हिंदी में अर्थ :- जिस प्रकार शुद्ध हवा पाने के लिए हम हमारे घर के पास एक पेड़ लागते है ठीक उसी तरह हमें उन नकारात्मक लोगों को भी अपने जीवन का एक अहम हिस्सा बनाना चाहिए जो लोग हमेशा हमारी निंदा यानी बुराई करते है क्योंकि जाने अंजाने में ही सही लेकिन वो लोग लेकिन वो लोग है हमारी सभी कमजोरियों और हमारे अंदर की कमियों को ढूंढ ढूंढ कर हमें बताते है ताकि हम उन कमियों को दूर कर अपने जीवन को और भी सुखमय और शांति पूर्ण बनाये. 

मंदिर लाख, करोड़ का, उसमें जड़े है हीरे लाली, दिन चारी पेषणा, बिनस जायेगा काली.

इस दोहे का हिंदी मैं अर्थ :- ईस दोहे के द्वारा कबीर दास जी हमें जीवन सारांश में समझताते है और कहते है कि हमारा यह शरीर लाख कीमती वस्तुओ और पत्थरों से बना हुआ एक मंदिर का सामान है, जिसे हम बेवजह ही सोने चांदी जैसी चीजों से सजने सवारने में लगे रहते है उसके बजाय हमें। हमेशा यह सोचना चाहिए कि हमारा यह भौतिक जीवन तो बस एक पानी का बुलबुला है जो कि कबिभी फुट सकता है इसलिए हमें हमेशा इसे परमात्मा की खोज में और अच्छाई मैं बिताना चाहिए

व्यक्ति को एक नजर में परखिये, मत परखना बारम्बार, उसको विश्वास मत करो जो स्वभाव बदलता हो बारम्बार.

इस दोहे का हिंदी में अर्थ :- इस दोहे के द्वारा श्री कबीर दास जी कहते है कि हमारे जीवन में आने वाले किसी भी इंसान को एक बार में ही परख लेना चाहिए जिसतरह एक भालू को सौ बार छानने से उसमें कोई न कोई नया कण मिल ही जाता है, ठीक उसी तरह किसी भी व्यक्ति के स्वभाव को सौ बार परखने से उसका स्वभाव नहीं बदलता सारांश में कहें तो हमें किसी भी व्यक्ति की पहचान एक बार में ही कर लेनी चाहिए क्योंकि किसी भी व्यक्ति को बार बारे परखने से उसका स्वभाव नहीं बदलता.

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हु तन तो सब बन भया,करम गए कुहांड़ी, आप आओ कुं काटी है, कहै कबीर बिचारि.

इस दोहे का हिंदी में अर्थ :- इस दोहे को समझताते हुए कबीर दास जी कहते है कि सभी इंसानों का शरीर एक एक घने जंगल जैसा है और हमारे कर्म एक तेज़ धार वाली कुल्हाड़ी जैसे है. और इस तेज़ धार वाली कुल्हाड़ी से हम दिनबदिन खुदको ही काटें जा रहें है.

इस दोहे का स्पष्टीकरण :- हमारे बुरे कर्म हमेशा हमारे जीवन में 

Sabse naye dohe kabir daas ke

इस दोहे का हिंदी में अर्थ :- इस दोहे के द्वारा श्री कबीर दास जी कहते है कि हमारे जीवन में आने वाले किसी भी इंसान को एक बार में ही परख लेना चाहिए जिसतरह एक भालू को सौ बार छानने से उसमें कोई न कोई नया कण मिल ही जाता है, ठीक उसी तरह किसी भी व्यक्ति के स्वभाव को सौ बार परखने से उसका स्वभाव नहीं बदलता सारांश में कहें तो हमें किसी भी व्यक्ति की पहचान एक बार में ही कर लेनी चाहिए क्योंकि किसी भी व्यक्ति को बार बारे परखने से उसका स्वभाव नहीं बदलता.

आने वाली मुसिबतों का कारण बनते है ये कभी हमारे मन को सुख और शांति नहीं पहुंचा सकते इसलिए जीवन हमें हमेशा अच्छाई और सच्चाई की राह पर चलना चाहिए जिससे हमारे मन को भी सुख और शांति की अनुभूति हो.

तेरे साथ कोई नहीं, सभी स्वार्थ के लोभी है, मन परतीति न ऊपजै, जीव बेसास न होई.

इस दोहे का अर्थ हिंदी में :- इस दोहे के द्वारा संत कबीर दास जी हमें इस दुनिया की सच्चाई को समझताते हुए कहते है कि हमेशा तुम्हारा साथ देने के लिए इस सृष्टि में कोई नहीं है अभी जो साथ है तुम्हारे वो अपने किसी स्वार्थ की वजह से तुम्हारे पास है, और जब तक तुम इस बात को अपने दिमाग में नहीं बैठाते तब तक तुम खुदपर और अपनी आत्मा पर कभी पूरी तरह से विश्वास नहीं कर सकते, अगर सारांश में कहें तो कोई भी व्यक्ति इस दुनिया में बसे हुए लोगों के अंदर का चल और कपट से अनजान रहता है और जिस दिन उसे इस बात एहसास होता है तबसे वो खुदपर और भी ज्यादा विश्वास करने लगता है.

है बहोत वजन, तनमन के बोझ बढ़ाये, इस संसार में वही आगे बढ़ जाये जो खुदको इन सांसारिक बेड़ियों से आजाद कर जाये.

इस पंक्ति का अर्थ हिंदी में :- इस दोहे के द्वारा संत कबीर दास जी हमें समझताते है कि इस संसार रूपी समुन्दर को सही सलामत पार करने के लिए हमारा शरीर और हमारा मन एक सुंदर नाव जैसा है, और यह नाव द्वेष लोभ इन जैसी चीजों से गुजरती जा रही है और इसी वजह से ये अब डूबने की कगार पर पहुंच चुकी है और इसके साथ ही हमारा शरीर में वासना जैसी चीजों से घिर चुका है, इन सब चीजों का बोझ शरीर और मन रूपी नाव में बहोत ज्यादा हो रहा है इतने बोझ को लेकर हमारे जीवन की नाव कभी संसार रूपी समुन्दर को पार नहीं कर सकती इसे असल में वही लोग आसानी से पार कर जाते है जो इन चीजों को छोड़कर खुदको हल्का कर लेते है.

जो व्यक्ति में में करे वो अनजाने में करे खुदका विनाश, जल्द न छुड़ाओ इन्हें तो बन जाते है गले की फास.

इस दोहे का हिंदी में अर्थ :- इस दोहे का अर्थ समझताते हुए कबीर दास जी कहते है कि हर किसी चीज़ को अपना समझना और हमेशा पैसों का लोभ मन में लिए घूमना यहीं कुछ चीज़ें है जो किसी दिन हमारे विनाश का कारण बन जाती है, हमारे अंदर का लालच और अहंकार पैरों की भयानक बेड़ियां है और एकतरह से देखा जाए तो वो हमारे गले की फांसी है.

संक्षेप्त में :- संक्षेप्त में कबीर दास जी कहते है कि हमें हमारे जीवन से लालच जैसी बुरी बला को हमेशा के लिए दूर करना चाहिए क्योंकि ये हमें कुछ पल की खुशियां जरूर देते है लेकिन लंबे समय को देखा जाए तो ये हमारे ये हमारे जीवन को निस्तनाबूत करने की क्षमता रखते है.

मन जाने सभी दिल की बात, गलत जानकर भी करे वही गलती बार बार, वो व्यक्ति कैसे बने सयान.

हिंदी में अनुवाद :- इज़ पंक्ति के द्वारा संत कबीर दास जी कहते हैं कि हमारा जो चेतन मन है वो हमारे बारे में सबकुछ जानता है हमारे दिनचर्या में जो सही और जो गलत कार्य हो रहें है ये उसका भी फर्क अच्छे से जानत है लेकिन ये सब जानते हुए भी गलत कार्यों को करता है ठीक उसी तरह जैसे कोई व्यक्ति रेगिस्तान में बरसात का इंतजार कर हो ऐसा इंसान किस तरह से कुशल रह सकता है.

मन भीतर रहे आईना, कभी खुदको देख नहीं पाए, चेहरा तो तौ परी देखिये, जे मन का चिंतन जाई.

इस पंक्ति का हिंदी में अनुवाद :-  इस पंक्ति में संत कबीर दास जी अपने अंदर की शक्तियों के बारे में हमें बताते है की हर व्यक्ति के मन में एक छुपा आईना होता है, लेकिन वह आईना कभी खुदको नहीं देख पाता है, वह असल में खुदको और वास्तविकता को सही ढंग से तभी देख पाता है जब कभीबी हम किसी मुसीबत यानी चिंता इत्यादि खत्म हो जाती है कबीर दास जी कहते है की जब कभी भी हम चिंता करतें है तो हम जाने अंजाने में खुदको अंदर से खोखला करने लगते है हम कबि कभी खुदको इतनी मात्रा में खोखला कर देते है कि हम खुदको तक नहीं पहचान पाते इसी लिए कबीर दास जी सलाह देते है कि हमें हमेशा चिता मुक्त रहना चाहिए और जीवन को हसी खुशी के साथ जीना चाहिये.

संसार का नियम है जो बोया है आज वही चीज़ पाये, बोये बीज बाबुल के तो आ कहां से खाये.

इस दोहे का हिंदी में अर्थ :- हमें इस दोहे के माध्यम से कबीर जी एक बढिहि महत्वपूर्ण सिख देते है जिसमें कबीर दास जी कहते है की हमें किसी भी कार्य को पूरा करने से पहले उस कार्य के परिणामों के बारे में जान लेना चाहिये और अगर बिना कुछ सोचे समझे किसी कार्य को पूरा करतें हैं तो तुम्हे पछताना पड सकता है, इस दोहे को एक उदाहरण के तौर पर भी समझाते है और कहते है कि अगर बबूल के बीज जमीन में बोते समय ही उसके अंजाम के बारे में समझ लेना चाहिये कि इन बीजों से बाबुल के पेड़ ही बनेंगे नाकि आम का.

मनमें रोज लाख इच्छायें आये जो छोड़ उन्हें अकेला आगे बढ़ जाये अंत में वही सयाना बन जाये, पानी से अगर घी निकले तो कौन सुखी रोटी खाये.

हिंदी में अनुवाद :- इस दोहे में श्रीमान कबीर दास जी हमारी मन के बारे में हमें एक पाठ पढ़ाते है, और कहते है कि हम सबके मन में बहोत सारी बुरी इच्छायें जन्म लेती है हमारे बस में इन सब इच्छाओं को पूरा करना नहीं होता इसलिए उन इच्छाओं को उसी पल भूल जाना चाहिए जिन्हें हम पूरा नही कर सकते हमें हमारे पूरा का पूरा ध्यान सिर्फ ओ सिर्फ उन्ही इच्छाओं के विचारों पर लगाना चाहिए जो हमारे भविष्य के लिए अच्छी हो और जिन्हें हम आसानी से पूरा कर सकते है. और आगे कबीर दास जी कहते है कि हमारे विचार रूपी पानी से अगर घी निकलता तो लोग सुखी रोटियों को क्यों खाते.

इच्छा मरे न तृष्ना मरे, बस मरता रहे शरीर, आशा तृष्ना बहती रहे ऐसा कहें कबीर

हिंदी में अनुवाद :- कबीर दास जी हमें इस दोहे के द्वारा कहना चाहते है कि किसी भी व्यक्ति का शरीर बार बार मरता रहता है लेकिन उस व्यक्ति का मन में बसी हुई आशा और तृष्ना कभी नहीं मरती ये खत्म होने बाद सिर्फ एक शरीर से दूसरे शरीर में बहती रहती है.

Jivan ko ek naya mod dene wale kabir ke dohon ki list

हिन्दू कहें कृष्ना तो मुस्लिम कहें रहीम, लड़कर आपस में दोनों मरें लेकिन ईश्वर अल्लाह सिर्फ एक है ये जान पाए न कोई

हिंदी में अनुवाद :- इस दोहे के द्वारा कबीर दास जी कहते है कि धर्म भलेही अलग अलग हो लेकिन ईश्वर सिर्फ ओ सिर्फ एक है इसी दोहे में आगे बढ़ते हुए कहते है कि हिन्दू धर्म का  व्यक्ति कहता राम तो मुस्लिम कहता अल्लाह है इसी छोटी सी चीज पर दोनों धर्म के लोग अपनी जानें गंवाते है लेकिन इनमें से कोई एक व्यक्ति नहीं समझ पाता कि ईश्वर अल्लाह नाम भलेही अलग अलग हो लेकिन वो एक है.

कबीरा खड़ा शहर में, सबसे बस मांगे खैर, न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर.

हिंदी में अनुवाद :- इस दोहे का अनुवाद करते हुए कबीर दास जी कहते है कि इस दुनिया में नाही किसी व्यक्ति से जरूरत से ज्यादा दोस्ती रखनी चाहिए और नाहीं किसी व्यक्ति के लिए मन में रखना चाहिए कोई बैर, सभी लोगों को हमें एक ही नजर से देखना चाहिए और हमीं जीवन में कभीबी किसी का बुरा नहीं सोचना चाहिए.

कबीर यह तनु जात है, सकै तो लेहु बहोरी, नंगे हांथु ते गए, जिनके लाख करोड़ी.

हिंदी में अनुवाद :- इस दोहे में श्रीमान कबीर दास जी कहते है कि हमारा यह शरीर बडाही अमूल्य है हमें हमेशा इसकी देखभाल करनी चाहिए और अगर हम ऐसा नहीं करते तो यह कुछ समय में ही नष्ट हो जायेगा. 

संक्षेप्त में :- हमें जीवन में सिर्फ ओ सिर्फ पैसों के पिछस ही नहीं दौड़ना चाहिए हमें हमारे जीवन का कुछ समय निकालकर हमारे इस अनमोल शरीर यानी तन पर भी ध्यान देना चाहिए जिन लोगों के पास अनगिनत संपति है वो लोग भी अक्सर शरीर की किसी कमजोरी की वजह से उम्र भर यानी जिंदगी भर हमेशा एक पीड़ित बनकर ही अपना जीवन व्यतीत करते हैं.

दोस्तों आपको हमारी यह कबीर के दोहे की ब्लॉग पोस्ट कैसी लगी हमें कमेंट करके जरूर बतायें और इस ब्लॉग पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ whatsaap और facebook पर शेयर करना बिल्कुल भी न भूलें क्योंकि इस ब्लॉग पोस्ट में कबीर के ज्ञान को कूट कूट कर add कियाया गया हूं धन्यवाद.


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