Introduction majarooh sultanpuri ka
नमस्ते दोस्तों आज हम आपके लिए लेकर आ चुके है है एक नई और शानदार पोस्ट जिसका नाम है majrooh sultanpuri shayari. दोस्तों जैसा कि हम सब जानते है majrooh sultanpuri जी एक बड़ेही उम्दा किस्म के शायर थे इनकी लिखी शायरियां अक्सर पढ़ने वालों की दिलो दिमाग में हमेशा के लिए छप जाती है, दोस्तों हम सब लोग जानते है कि majrooh sultanpuri जी की shayriyan लिखने का अंदाज़ एक अलग था वो उन आम शायरों जैसे सिर्फ तन्हाई और गम पर नहीं बल्कि majrooh sultanpuri साहब कई सारे विषयों पर शायरियां लिखते थे mejrooh साहब हर उस चीज़ को अपने लफ़्ज़ों के जरिये आसान बना देते थे.
जिन्हें समझने में लोगों के पसीने छूठ जाते थे, दोस्तों साल 2021 में उनकी मौत को 21 साल पूरे हो चुके है लेकिन उनके चाहने वालों ने आज भी majrooh sultanpuri की शायरियोंको वो बड़े मजे से पढ़ते है क्योंकि majrooh sultanpuri की शायरियों में जो हमें खूबसूरती देखने को मिलती है वो खूबसूरती शायद ही किसी और शायर की शायरी में हमें देखने को मिलती है. majrooh sultanpuri के जिंदगी के बारे में बात करें तो उनका जन्म 1 ऑक्टोबर 1919 को एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था घर के हालात इतने भी अच्छे नही थे लेकिन उनका गुज़ारा अच्छे से हो जाता था,
फिर कुछ सालों बाद उन्होंने अपने नजदीकी स्कूल में अपना दाखिला ले लिया. दोस्तों कहा जाता है कि majrooh sultanpuri ki शायरियोंका सफर उनके स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के दौरान ही शुरू हुआ जब उन्होंने अपने अंदर लिखने की एक खूबी को पहचानकर शायरियां और गज़लों को लिखना शुरू कर दिया. दोस्तों majrooh sultanpuri जी का असल नाम "असरार अल हसन खान" था लेकिन उनकी शायरियोंमेंसे बादशाहों की बादशाही की झलक देखने को मिलती थी और उनकी पैदाईश भी उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में हुई थी इसलिए उन्हें प्यार से majrooh sultanpuri नाम से जाना जाता है.
(50+) ki sabse anokhi majrooh sultanpuri ki shayari ya hindi mai
मजरूह मैंने तो खुदको अकेला ही महसूस किया था शुरुवात में लेकिन वक्त के साथ नये लोग जुड़ते गये कारवां बनता गया.
इस दुनिया में कोई हमारा हमदम न रहा और कोई हमारा सहारा न रहा, कम्बखत जिंदगी में हम किसी के न रहे और कोई हमारा न रहा.
ऐसे मुस्कुराकर हर किसी से मिला ना करो क्योंकि लोग अक्सर इन्ही अदाओं पर मर मिटते हैं.
काश हमभी तेरी अहमियत को पहचान लेते, छोड़ देते ज़माने तुझे सवारने में अपना सारा वक्त लगा देते, यूँ तो हमारे बस में नहीं है, कुदरत से लड़ाई करना वरना तेरे लिए इस ज़माने का रस्म-ओ-रिवाज़ तोड़ देते.
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Majrooh sultanpur ki shayari ya |
होते कुछ करीशमें इन हातों में तो खुदको खुदको यूँ बर्बाद न होने देते, तोड़ देते सभी जंजीरें ज़माने की और तुझे अपने ज़हन से हमेशा के लिए मिटा देते.
उसके इंतज़ार में मत पूछ जिंदगी कैसे बसर हुई, कभी जली उम्मीद की लौ तो कभी जलते जलते ही खत्म हुई.
बेवफा का जिक्र सुनकर आखिर तुम क्यों बैचेन से हो गये, तुम्हारी बात नहीं है ये तो दास्तान है जमाने की..
इस कम्बखत गम-ए-हयात ने हमें आवारा कर दिया वरना ख्वाइश तो थी की तेरे दर पर सदियां गुजारते.
अच्छा हुआ बचा लिया गया में तूफान की मौज से वरना, किनारे पर बसे लोग तो मेरी कश्ती ही डुबा देते.
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सुकून को ढूंढते रहो जब तक सीने में तुम्हारी सासें चले, कभी बेवजह किसी के ईमान पर शक मत करना, क्या पता तुम्हारी शक्सियत को निखारते निखारते वो खुदकी शक्सियत बेच दे..
ज़ायके की बस्ती में रहकर भी मिठास को हमारी आजतक कोई नहीं समझ पाया, मजरुह हम आज तक सिर्फ बेज़ायकेदार रहे.
मजरूह अब तो अक्सर सोचतें हैं आखिर कहां से ढूंढ लाएंगे तुझसा शक्स हम, पहले नींद तो खुले तेरी सपनों की तभी तो जुटें कोशिश-ए-तलाश में हम.
थे जिनकी जिंदगी के हर सुकून के जिम्मेदार हम आज नजाने कैसे बन गए है उन्ही की नज़रों में गुन्हेगार हम.
अमीरों के पास सबकुछ होने के बाद भी उन्हें नींद की गोलियों का सहारा लेना पड़ता है, लेकिन गरीबों के इतने नखरे नहीं होते मजरूह इन्हें तो अखबार को अपनी चादर बना कर सोना पड़ता है..
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Majrooh sultanpuri ki shayari |
तुझसे मिलकर जिंदगी के सारे फसाने भूल गए, करनी थी हम जैसे थके हारे शक्स को सुकून की तलाश, कम्बखत तुझसे रूबरू होकर अपनी सभी गमों और परेशानियों को भूल गए.
कोई हमारी मुश्किलों का सहारा ना रहा, कोई हमारे के गमों का सहारा न रहा, हम तो हर किसी के खुशी गमों में साथ थे जब हमारा वक्त आया तो कोई कम्बखत हमारा ना रहा.
हमें नहीं रोक सकता कोई शख्सज़माने का मजरूह हम तो हवा हैं, कितनी भी बंद जगह हो उससे निकल जाते है.
मजरूह उसने तो एक सलीके से हमें इश्क के जाल में फसाया है, वो बेवफा है तो बेवफा ही सही लेकिन हमने तो अपनी आखरी सांस तक उनसे अपनी मोहब्बत का फर्ज निभाया हैं.
क्या गलत है उसको चाहने में जो उसके एक नजर देखने से ये ज़माना मेरा दुश्मन हुआ, वो शख्स है ही इतना प्यारा की हर इंसान उसका अपना हुआ, नहीं है लोगों में हिम्मत जो किसीने उसे अपने दिल का नहीं कहा, हम तो पहले से ही आवारा थे जो कहकर ज़माने को का दुश्मन हुआ.
ये हिन्दू ये मुसलमान ये तो बस हमारी सोच ने सरहदें बनाई है, खुदा ने तो बस एक मुक़्क़दस नस्ल इंसान बनाई है.
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Majrooh sultanpur ki shayari ya |
मजरूह मेरे जिंदगी की दास्तान ये है, हर शख्स ने सौदा किया जो आंसू पोंछने के बहाने से आया था.
मजरूह वो सीखा रहा है हमें मोहब्बत का करने ढंग, लेकिन उनसे कोई कहो कि हमारे इश्क़ की किस्सों की किताबें छप चुकी है.
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जलाके मशालें हम मंज़िलों की तलाश में चले, और जब हासिल हुई मंज़िल तो उससे भी बड़ी मंज़िल को अपने पास करें.
मैंने आज उसको सजते संवरते हुए देखा है, जन्नत नहीं देखी आज तक लेकिन जन्नत का एक फरिश्ता देखा है.
अब अकेले में बैठकर ही खुदको पूरा महसूस करता हूँ, खोने के लिए तो अब कुछ नहीं है, लेकिन पाने की बहोत सी ख्वाहिशें दिल में दबाए रखता हूँ.
इस मासूम दिल की ख्वाइश थी मस्ती की तलाश में, कुछ देर के लिए ही सही लेकिन थोड़ा बाहर निकलते, अगर होता कोई हमसफर खास तो हम भी सफर में आने वे मुश्किलों से हंसकर गले मिलते.
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Majrooh sultanpuri |
ख्वाइशें ही ख्वाइशें है ज़माने की आजतक जो पाया है उसकी किसी को नहीं है परवाह, लंबे अर्से तक जीना तो है सभी की ख्वाइश मजरूह लेकिन इतनी खूबसूरत दुनिया देखने का किसी के जुबां पर जिक्र, छोड़ो सभी गमों की बरसातों को तुम तो बस करो मोहब्बत और दो वक्त की रोटी की फिक्र.
बहोत ढूंढ रही थी तो ज़माने वालों उसको मेरा पता बता देते, जी तो रहे थे गमों की धूप में कुछ वक्त मोहब्बत की बारिश को भी महसूस कर लेते.
Majrooh sultanpuri ki shayari ki images
कोई कितना चाहे बुरा हमारे साथ, असलियत में होता वही खेल होता है, खुदा ने हमारी तकदीर के साथ.
कही लगा हुए दिल से मोहब्बत की उम्मीद करना फिजूल का काम है, जिसके दिल में सिर्फ तुम्हारी ही तस्वीर हो उसे अपने जिंदगी का अहम हिस्सा बनाना सही अच्छा काम है।
हमें क्या ज़िन्दगी का खौफ दिखाते हो, हमने मौत के मंज़र देखे है तुमसे ज्यादा, तुम नहीं हो हमसे बर्बाद लेकिन फिर भी देखो हम मुस्कुराते है तुमसे ज्यादा.
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Majrooh sultanpur ki vo shayari jo kahi nahi likhi aur padhai gayi. |
ख्वाइशें दिल में भर कर उनसे रूबरू हम हुए, चाहते बहोत थे उन्हें इसलिए उनमें हम मदहोश से होते रहे, बोलना तो बहोत कुछ था उनसे मजरूह लेकिन उनके हातों में किसी और कि अंगूठी देखी तो दिलके सभी खयालों को एकएक कर मिटाते रहे.
शोहरत की हमें ज़रूरत नहीं जमाने वालों, हम तो उसकी पहले से ही उसकी मोहब्बत की वजह से दुनिया के हर शक्स की जुबान पर छाये हुए बैठे हैं.
आज नहीं तो कल जरूर उगेगी मेरे खेत में फसल, ममजरूह यहीं सोचकर पूरी दुनिया भर पेट खाना खिलाने वाला किसान आज भूखे पेट सो रहा है.
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मंज़िल को भी चुना उसे पाने की सोच रखता हूं मैं ही, सोने को दिल करता है लेकिन रातों को भी मंजिल की और बढ़ता हूं में ही, मजे से जीते है आम लोग जिंदगी लेकिन अपने सपनों के लिए अपने आज की खुशियोंकी कुर्बानी देता हूं मैं ही, अच्छे ढंग से जिंदगी बिताने की हर किसी की ख्वाहिश होती है लेकिन उनमें से रोज़ खुदको निहारता है वो हूं मैं ही।
जैसे ही मुझे जिंदगी खूबसूरत लगने लगी, वो मुझसे मोहब्बत का इजहार कर गये।
मैंने अपनी उड़ान क्या भरी बादलों ने भी अपना कद ऊंचा कर लिया, अपने दुश्मनों को आजतक तो मारा नहीं, बस उन्हें अपनी कामयाबी दिखाकर हर बार जला दिया।
साहिल को चखा तो उसकी उठती हुई लहरों को अपनाया है, हमसे कभी मत उलझना क्योंकि हमने अच्छे अच्छो को बड़े सलीके से कब्र में पहुंचाया है।
महफ़िल ए मोहब्बत में बेवफाई का लफ्ज़ सुनकर आखिर तुम क्यों संभल कर बैठ गये, तुम्हारे बारे में नहीं कहा ये तो बात है जमाने की.
था मौसम सुहाना तो हमने हज़ारों बार दाएं और बाएं को देखा, जब नहीं थी किसी कम्बखत की नज़र तब एक नज़र में ही तुम्हें सौ बार देखा.
सुना है फूलों से लेकर काटों तक है कई हज़ारों वीराने कहता है लेकिन इस अज्म ए जुनून से सहारे से गुलिस्तान दूर है.
ये आग चिराग की नहीं ये तो दिल की आग है इसे बुझाते बुझाते खुद जल उठेंगे तालाब समुन्दर पुराने.
मजरूह किस्मत की शिकायत तो है कमजोर की निशानी, जो अपनी मेहनत से खुद लिखें किस्मत अपनी उसी की है ये दुनिया दीवानी।
तेरे साथ जैसे मिला हम अपनी मंज़िलों को भा गये, पहले तो बहोत थे हम बर्बाद, लेकिन जैसे ही तेरा हुस्न-ए-दीदार हुआ हम आबाद हो गए.
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Majrooh sultanpur ki shayari |
मजरूह मोहब्बत की चाह में हमारी सुबह की शाम हुई, करनी तो बहोत थी उनसे बातें लेकिन जल्दबाजी में ठीकसे मुलाकात ही नहीं हुई.
कभी चिराग को जलाया तो कभी उसे बुझाकर छोड़ दिया, उसकी बेवफ़ाई तो दिल में ले आयी थी बहोत नफरत, लेकिन उसका अक्स कहीं दबा था किसी कोने में उसने नफरत को बुझाकर वापस दिलमें सादगी को भर दिया.
मिली थी जब उनसे हमारी नज़र बस रहा था एक जहां, जी रही थी उस एक पल में लाखों जिंदगियां, खुल रहां था आसमां, था हर कोई प्यासा इस जहां में लेकिन एक में ही था जो तेरे इश्क़ की बरसात में बिल्कुल नहीं लग रहा था प्यासा.
महफ़िल ए मोहब्बत में उनकी याद जो दिलाई आज साकी ने, इतना टूट चुके है कि जाम से भरा हुआ ग्लास तक ना उठा सके.
अपने जिंदगी के हर लम्हे का लुफ्त उठाना है तो पैरों को जिन जंजीरों ने जकड़ रखा है उनकी और मत देख, अगर देखना ही है तो जंजीर को तोड़ने के तरीके और, खुले आसमान के नीचे चैन से जीने सपनों को देख.
तेरी बाहों को छोड़कर और भी कहीं सुकून मिलता है ये भूल गये, जैसे ही तेरी महफ़िल से निकले कम्बखत घर जाने के सभी रास्ते भूल गये.
Majrooh sultanpuri ki biography
दोस्तों majrooh sultanpuri अपनी स्कूली पढ़ाई में इतने अच्छे नहीं थे लेकिन फिर भी वो स्कूल में सबसे मशहूर बच्चों में से थे क्योंकि उनकी majrooh sultanpuri की शायरियां उनके टीचर्स से लेकर उनके दोस्त तक सभी लोग बड़े अच्छे से सुनते थे, फिर जैसे ही उनके स्कूल का दौर खत्म हुआ फिर उन्होंने कुछ काम करने का सोचा तो फिर अपना शुरवात में छोटी मोटी नौकरियों को करना शुरू किया नौकरि करते करते majrooh sultanpuri ने शायरियां लिखना नहीं छोड़ा बल्कि जब भी उन्हें फ्री टाइम मिलता को कुछ पंक्तियां लिख दिया करते थे और फिर majrooh sultanpuri जी अपनी लिखी शायरियोंको मुशायरे में जाकर भी सुनाते थे जिससे उनकी अच्छी खासी कमाई भी हो जाती थी उनका आखरी मुशायरा उन्होंने आजादी के कुछ दिनों पहले किया था,
जहां majrooh sultanpuri की शायरियोंको दीवाने हज़ारों की तादात में उन्हें सुनने आ पहुंचे थे और जब हिंदुस्तान और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ फिर उन्होंने हिंदुस्तान में अपनी मशहूरियत को देखते हुए, हिंदुस्तान में ही अपने आगे की जिंदगी को बसर करने का फैसला लिया.
अगर उनके फ़िल्मी दुनिया के सफर की बात करें तो उनका सफर 1945 में ही शुरू हो चुका था जब वो मुम्बई में एक मुशायरा पढ़ने गए थे तो उनकी मुलाकात ए. आर. कारदार जी से हुई और उनसे गुफ्तगू की, बातों ही बातों में कारदार साहब ने कहा कि मैं majrooh sultanpuri की शायरियोंको बहोत पसंद करता हूं और में अपनी फिल्म में मेहरूज जी से एक गाना लिखवाना चाहता हूं,
जिसे मेहरूज साहब ने बिना कुछ सोचे सीधा हा कर दिया और फिर कुछ दिनों बाद वो नौशाद जी से मिले जो कि एक बड़ेही मशहूर संगीतकार थे फिर उन्होंने कई धुनों को सुनकर एक धुन पर गाना लिखने का फैसला लिया और वो गाना बनने के बाद काफी ज्यादा मशहूर हुआ फिर जैसे majrooh sultanpuri जी की जिंदगी ही बदल गयी उस गाने को सुनकर कई जाने माने फ़िल्म निर्माताओं ने उन्हें अपनी आने वाली फिल्मों के लिये वो गाने लिखने को कहा जिसे मानते हुए मजरूह सुल्तानपुरी जी ने कई फिमों में गानों को लिखा जैसे कि पाकीज़ा, तांगेवाला, अंदाज़, साथी, धर्मकांटा, गुड्डू जैसी फिल्मों में बतौर गीतकार बनकर काम किया.
और फिर उनके इन्ही प्रयासों को देखते हुए उन्हें दर्जनों अवार्ड्स दिए गए जैसे कि उन्हें 1964 में उनके एक बड़ेही खूबसूरत गाने को लिखा इसलिए उन्हें फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड दिया गया और फिर फिल्मी दुनिया का सबसे मशहूर और नायाब दादासाहेब फालके अवार्ड उन्हें 1993 में उनकी काबिलियत को देखते हुए दिया इतनी शौरत हासिल करने के बाद भी majrooh sultanpuri की शायरियां किताबों के रूप में छपती रही. और दोस्तों इस प्यारे हर अनोखे शक्स की मौत 25 मे 2000 की सुबह को ही ये शायरि और ग़ज़ल पढ़ने वालों के लिए एक बडीही बुरी खबर थी.
जब कभी दुनिया उठाये उंगली तो उन्हें आखिर किसतरह जवाब दें, जब हमारे मेहबूब को ही नही हो हमारी कोई तो जमाने की फटकार को क्यों दिल पर लें.।
है ईमान साफ इसमें कोई बेईमानी की दाग नहीं, खुदके बनाये उसूलों कों ही दुं, कम्बखत में इतना भी अपनी मजबूरीयों के तले दबा नहीं.
खुली हवां में जीना है तो कैदियों के साथ रहना छोड़ दे, मुस्कुराना चाहता है जिंदगी में तो गमों के सायों को छोड़ दे, और इतनी ही मोहब्बत है उससे तो कम्बखत यूँ हिचकिचाना छोड़ दे.
जीने मरने की कसमों में हमको जकड़ रखा था, थे बहोत से दीवाने हमारे लेकिन कम्बखत उसने हमें अपना दीवाना बना रखा था.
दिल में था एक अजीब सा सपना रूबरू होकर उसको उसकी मनपसंद चीजें देकर उसे हमेशा के लिए अपना बनाने का, लेकिन मेरी किस्मत में यही था शायद उसे किसी और का होते हुए देखने का.
उसको बहोत चाहते थे उसे हम हमेशा ज़माने से अलग समझें, कत्ल उसी ने हमारा किया जिसे हम अपनी जान से प्यारा थे समझे।
मिली थी जब उनसे नज़रें चारों तरफ मौजूद थे उनके दीवाने, कइयों ने उन्हें अपना माना लेकिन एक वही थे जो दिलसे हमेशा हमें अपना माने.
और भी होते हसीं लोग ज़माने में तो तुझे कबका भुला देते, जी लेते जिंदगी बिना तुम्हे अपना माने.
तेरे जिस्म को चाहने की हर शक्स तमन्ना रखता है, असल मर्द वही होता है जो हमेशा रूह से अपनी आशिकी बनाये रखता है।
जब भी होता है जिक्र मोहब्बत का तुम्हारा चेहरा नजर आता है, जब भी देखो सपना तुम्हे पाने का कम्बखत हल्की सी आवाज़ आने पर भी टूट सा जाता हैं.
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Majrooh sultanpuri ki shayari |
गुलिस्तां में भवरों की पहचान नहीं होती, होती है उन्ही लोगों की इज़्ज़त इस जहां में जिनकी जिंदगी में कुछ कर गुजरने की ख्वाइश है होती.
दोस्तों अगर आपको हमारी यह majrooh sultanpuri की शायरी की ब्लॉग पोस्ट पसंद आई तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं और इस महरूज सुल्तानपुरी की ग़ज़ल उन लोगों को जरूर भेजना जो शायरियां और ग़ज़ल पढ़ना पसंद करते है. यहां तक पढ़ने के लिए धन्यवाद.
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