Munawwar rana ka introduction
नमस्ते दोस्तों आज हम आपके लिए लेकर आ चुके है एक बडीही मजेदार ब्लॉग पोस्ट जिसका नाम है munwaar rana shayari in hindi दोस्तों हमने इस पोस्ट में कुछ चुनिंदा और सबसे लोकप्रिय munwwar rana साहब की शायरियोंको जोड़ा है जिनकी कविताएं और गज़लें दुनिया भर में मशहूर है, दोस्तों इनकी लोकप्रियता की बात करें तो शायरी और ग़ज़ल का शायद ही ऐसा व्यक्ति होगा जो मुन्नवर राणा इस नाम को नहीं पहचानता हो, दोस्तों munawwar rana साहब का जन्म 29 नवंबर 1952 को बरेली उत्तर प्रदेश (भारत) में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था,
दोस्तों उनके परिवार के अधिकतम लोगों ने बटवारे के समय हिंदुस्तान को छोड़ने का फैसला किया था लेकिन मुन्नवर साहब पिताजी ही थे हिंदुस्तान की मिट्टी को कभी नहीं छोड़ा और वो हिंदुस्तान में हमेशा के लिए बस गये, दोस्तों सभी शायरी और ग़ज़ल के दीवाने इन्हें मुन्नवर राणा के नाम से जानते है लेकिन असल मै इनका पूरा नाम सैयद मुन्नवर अली है.
दोस्तों राणा की जिंदगी हमेशा से ही अच्छी नहीं थी बल्कि उनके जिंदगी में कई बुरे मोड़ आये जिन्हें राणा साहब ने मुस्कुराते हुए पर किया. दोस्तों ये बात उस समय की है जब मुन्नवर राणा कोलकाता में अपनी पढ़ाई पूरी कर रहे थे तब अनचाहे हालातों की वजह से उनका झुकाव नक्सवाद की और हो गया.
लेकिन जैसे ही राणा के पिता के कानों पर ये बात पहुंची तो उन्हें बहोत बड़ा धक्का लगा क्योंकि वो अपने बेटे मुनव्वर से बहोत प्यार करते थे लेकिन उसके साथ साथ वो अपने वतन की मिट्टी को सबसे आगे रखते थे, तो इसलिए उन्होंने अपने दिल पर पत्थर रखते हुए एक फैसला लिए और पूरे दो सालों के लिए मुन्नवर को घर से बाहर निकाल दिया.
जिसके बाद मुन्नवर अपने सबसे पसंदीदा शहरों में से एक शहर में जाके बसने का फैसला लिए जो कि नवाबों का शहर लखनऊ था जहां रहते हुए उनकी मुलाकात एल बड़ेही तजुर्बेकार और अनोखे शायर से हुई जिनका नाम "वसी अली" साहब से हुई जो कि उस वक्त के सबसे मशहूर शायरों में से एक थे, जिनके साथ कुछ वक्त गुजारते गुजारते उन्होंने बहोत कुछ सीखा और कुछ सालों बाद अपनी एक ग़ज़ल भी बनाई जिसे उन्होंने दिल्ली के एक मुशायरे में सुनाया था जिसे हमने इस munwwar rana shayari की ब्लॉग पोस्ट में भी जोड़ा है.
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थोड़ा मनमुटाव वहां भी मंजूर है जहां सच्ची मोहब्बत की मौजूदगी है, जिस झील में पानी काफी गहरा हो वहां थोड़ी बहोत काई का होना लाजमी है.
भागदौग भरी जिंदगी में अक्सर थककर चूर हो जाता हूं, जब भी मिलाता हूं मां से नज़रें फिरसे तरोताज़ा हो जाता हूं.
दो रुपये के सिक्के को देखकर ये अक्सर दुनिया को भूल जाते हैं, ये बच्चें है बचपन में ही अपनी जिंदगी का असल लुफ्त उठा जाते हैं.
मुश्किलें कितनी भी हो हमेशा मुस्कराना चाहिये, हो किसी के लिए दिल में सच्ची मोहब्बत तो, उसका खुलेआम इजहार होना चाहिये, ए कम्बखत जिंदगी हमें आखिर कबतक यूं दरबदर करेगी, टुटाफुटा ही सही लेकिन घरबार होना चाहिये.
दो वक्त की रोटी तक नहीं दी उस कम्बखत ने अपनी माँ को मगर, माँ ने जमाने में यही बताया कि बेटा सबसे अच्छा है.
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तेरे इंतजार में सिर्फ यही सोचकर कि तेरा लौट आना पक्का है, एक अरसे से घड़ी की और मुड़कर नहीं देखा.
नजाने कैसी सुकूं की रात आती है जब तेरी मौजूदगी हमारे साथ होती है, वैसे तो लाख बुराइयां है तुझमें लेकिन मुझे तो हमेशा बस तेरी अच्छाई नजर आती है,
जमाने की खुशियों में शरीक होने हम घर से कम निकलते हैं, जब भी खोलो दिल की किताब को हमेशा गम ही मिलते हैं.
महज़ एक छोटे से किस्से की तरह उसने मुझे अपने ज़हन से निकाल दिया, एक पैगाम की तरह वो अभीतक मुझे याद है.
थकान हो जितनी सभी एक झटके में उतार देती है, खुदकी खुशियों को छोड़कर अपने बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाती है, बच्चो से भलेही मिले उसको दर्द लेकिन ज़माने में हमेशा अपने बच्चों की इज्जत बढ़ाती है, सचमें यारों माँ तो माँ होती है.
मोहब्बत करनी ही है तो इतनी शिद्दत से करना कि जमाने हर कोई तुम्हारी मिसालें दे, और अगर उसे याद कर रोना ही है तो इसके कदर रोना की बादल भी तुम्हारे सामने तौबा करदे.
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Munnwar rana sahab ki sabse anokhi shayari |
कितनी भी कोशिश करो ये कम्बखत हमेशा जेहन में बना रहता है, एक आशिक हमेशा इश्क की वजह से बर्बाद रहता है.
जिंदगी भर के लिए बेजुबान हो गए सांप से सिर्फ यह सुनकर, की जिस वक्त से इंसानों को डसा है खुदके ईमान से बेईमानी की बू आने लगी है.
इन मासूमों को अपनी खुशियों के ठिकाने बड़े अच्छे तरीके से याद रहते हैं, किस गली में है खिलौनों की दुकान बच्चे बड़े अच्छे से समझते हैं.
कोई शक्स किसी के साथ उम्र भी गुजारले लेकिन तब भी अच्छा नहीं लगता, और कोई इंसान एक नजर में किसी की जिंदगी बन जाता है.
हम उसकी खूबसूरती को निहारते निहारते कुछ इस तरह से खो जाते हैं, जैसे छोटेसे बच्चे मेले की चकाचौंद को देखकर वहीं बस जाते हैं.
जिंदगी में कभी उतनी तवज्जो देकर हमने खुशी को नहीं देखा, जिस पल महसूस किया तुम्हारे इश्क़ को तबसे कभी गैर की और नहीं देखा.
जब भी छूता हूं माँ के कदमों को ये सारी कायनात खुशनुमा हो जाती है, जब भी पढ़ता हूँ उर्दू की ग़ज़ल, माँ हिंदी मुस्कुराती है.
में तो एक बंद ताला हूं किसी गैर चाबी से खुल नहीं सकता, तुही मेरी चाबी है तेरे बिना में कभी किसी और का हो नहीं सकता.
मुन्नवर अब तो कोई दोस्त लाओ मुकाबले में हमारे, क्योंकि सारे ज़माने में कोई दुश्मन हमारे बराबरी का नहीं.
Munawwar rana ki sabse mashhur shayari images ke saath
वो सुबह उठकर मिलने चले आये हमसे, कौन कम्बखत कहता है की सुबह के सपने सच नहीं होते.
वो मुझसे जुदा होकर भी हमेशा मेरे ज़हन ओ खयालों में मौजूद होता है, कितना भी मिटाने की कोशिशें करो कम्बखत हमेशा दिल के किसी कोने में चैन से बसा होता है.
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Munnwar rana ki shayari |
अब जो बिछड़ रहे हो तो अपनी ज़िन्दगी में और भी बेहतर मुकाम को हासिल करो, बहोत कर लिया हमें परेशान अब बस ख्वाबों में आना बंद करो.
नरमी इतनी है शक्सियत में की सभी छोटे बड़ों के जूतों को सीधा किया, और सकती इतनी की आज तक कभी सर का ताज खुदके हातों से नहीं पहना.
तुम्हारी एक मुस्कुराहट में जिंदगी के सभी पलों को जी लिया हमने, और जब हम बिछड़े तुमसे सभी की सभी हसरतों को दफना दिया हमने.
मेरी हर नादानी पर मुझे मुस्कुराकर समझाती है, जब भी सर पर हाथ रखती है, मुझे जन्नत का एहसास करवाती है, सचमें यारो माँ तो माँ होती है.
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Munnawar rana ki maa par shayari |
अभीभी सासें चल रही है मेरी माँ की मुझे कोई खतरा छू नहीं सकता, जब भी अपने पैरों को घर से बाहर निकालता हूं साथ में माँ की दुआओं को भी लिए चलता हूँ.
किसी की एक याद भी जिंदगी के लिए बहोत बड़ा खतरा है, क्या तुमने देखा नहीं, यादों से दिल के अनगिनत टुकड़ें होना.
जब भी मेरी कश्तिनुमा जिंदगी में बाढ़ आती है, कोई साथ नहीं होता तभी माँ की दुआयें अपना असर दिखाती है.
रातों को फुटपाथ पर अखबार बिछाते ही गहरी नींद में चले जाते है, ये गरीब होते है जनाब सोने के लिए कभी नींद की दवाइयां नहीं खाते.
बडाही करिश्माई आइना था माँ की आखों में, उम्र कितनी भी हो जाये कभी बूढ़ा हुआ नहीं दिखाता.
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में अपने ज़हन से कभी मिटाना नहीं चाहता उसकी यादों को लेकिन, इन कम्बखत ज़ख्मों का भी दिल पर मौजूद रहना भी ठीक नहीं.
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Munnawar rana ki behtareen shayari |
मुन्नवर आज फिर यादों की रेल ने वहीं आकर खुदको रोक लिया, बचपन में खेले थे जिन पटरियों पर हम.
Munawwar rana shayari on life | munnawar rana ki zindagi par shayari
इतनी ज्यादा उम्मीदें इस कम्बखत जमाने को हमसे है, इतना तो हुनर भी नहीं लाये हम.
हमेशा हंसती मुस्कुराती हुई अजान देखी है, मैंने जन्नत को तो नहीं देखा लेकिन माँ देखी है.
अपने जिंदगी का सबकुछ अपने बच्चों पे न्यौछावर कर देते हैं, वो माँ बाप ही होते हैं जो अपने बच्चों के खातिर अपना जिंदगी तक को दांव पर लगाते हैं
जन्नत के फ़रिश्तें भी उन लोगों के जिस्म को खुशबू से भर देते हैं, जो अपनी मां को हर हालात में खुश रखते हैं.
में तो सिर्फ यही सोच कर अपने माँ बाप की सेवा में लगा हूँ, की इसी खूबसूरत पेड़ की छांव में मेरे बच्चों का बचपन गुजरे.
मेरे सर पर सिर्फ ओ सिर्फ ऐसा एकही कर्ज़ जिसे में मरकर भी चुका नहीं सकता, जब भी देर होती है मेरी माँ भूखे पेट राह देखती रहति हैं.
जब भी मिलता हूं माँ से हमेशा चेहरे पर एक मुस्कुराहट सी बनी रहती है, और जब भी कोई मुसीबत देती है दस्तक तब सिर्फ ओ सिर्फ मां की दुआएं ही काम आती है.
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Munnawar rana ji ki shayari ya |
रोते वक्त भी मुस्कुराना अच्छा लगता है, जब साथ होती है माँ तब मुसिबतों का पहाड़ भी बच्चा लगता हैं.
किसी वक्त मुझे भी तेरे साथ जोड़ेंगे जमाने वाले, बेशक अभी तोड़ रहे है, लेकिन कभी तो होश में आयेंगे ये मोहब्बत से दुश्मनी की सोच रखने वाले.
हर शक्स में उसका अक्स दिखाई देता है, शायद उसने मेरी नजर को बांध रखा है.
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अच्छा लगता है उसके इंतजार में खुदको झूठी तस्सली देना, तस्सली झूठी ही सही लेकिन दिल को राहत दे जाती है.
तुम्हारी आखों में अजीब सा नशा है, जिसका हर शक्स दीवाना है, हमें तलाश है उन आखों की जिसका किरदार की मंज़िल हमें अपनाना है.
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Munnawar rana ki shayari ya |
जितनी शिकायतें इस कम्बखत जमाने को हमसे है, उतनी बुराइयां तो हममें नहीं
जहां दिल भर जायें ठीक वहीं से मुझसे रिश्ता तोड़ चले जाना, लेकिन कभीभी साथ रहकर मुझसे बेवफाई ना करना.
खुशी से जिंदगी जीता है हर पल मुस्कुराता है, जो जिंदगी में कभी मोहब्बत नहीं करता वो हमेशा आबाद रहता है.
बिना कुछ कहें हमारे जज़्बातों को समझेगा, जिंदगी में अगर बहनें ही नहीं होंगी तो आखिर हमें राखी कौन बांधेगा.
बिना किसी उम्मीद के उसकी तलाश कर रहां हूं, नजाने में आखिर कैसी जिंदगी को जी रहां हूं.
सच्चे प्यार की मूरत और लाखों कुर्बानियां देखी है, मैंने जन्नत तो नहीं देखी लेकिन माँ देखी है.
मेरे साथ रहकर अगर खुशी ना मिले तो बेशक मुझे उसी मोड़ पर छोड़ देना, लेकिन खुदा के लिए बेवफाई कर दोहरी जिंदगी कभी मत जीना.
जब कभी लगता हूँ मैं अपनी माँ के गले मेरी हर रग मुस्कुराती है, उसके बिना सबकुछ होकर भी कुछ अच्छा नहीं लगता, लेकिन जब वो सामने होती है तब मुझे सारी दुनिया मिल जाती है.
तुम्हारे हर जिक्र पर एक नया जख्म सामने आ जाता है, है पाने का जुनून इसलिए जिंदा हूं, लेकिन बिना तेरी मौजूदगी के अंदर का आशिक पल पल मरता जाता है.
लोग मतलब है तबतक ही साथ मौजूद होते है, और जब आती है कोई मुसीबत तब सभी अपने पहोंच से दूर खड़े हुए मिलते हैं
वो शख्स बडाही खुशकिस्मत होता है, जो थका हारा अपनी मा के आंचल में सर रख कर सोता है.
कभी हंसाता तो कभी बहोत रुलाता है, दौर ए मोहब्बत का इंसान से बहोत कुछ करवाता है.
किस्सा-ए-मोहब्बत में आखिर में क्या होता है, सीधा साधा आदमी जो एक आशिक बनकर तबाह होता है.
एक बडीही करिश्माई चीज़ औरतों में मौजूद रहती है, वो भलेही सारी दुनिया भूल जाये लेकिन उसके बच्चों की तस्वीर हमेशा उसके दिलमें छपी होती है.
इंसान की दरिंदगी का हरजगह सबूत मिल जाता है, जब किसी सीधी साधी लड़की की आबरू से कोई बनकर दरिंदा खेल जाता है.
मोहब्बत की लेकिन महफ़िल में मज़ाक बनकर रह गए, उन्होंने हमसे बेवफाई की लेकिन वो अच्छे इंसान रह गए.
हवस की आग में इंसान अक्सर जानवर बन जाता है, पता नहीं ये कम्बखत अपनी माँ बहन को खुदसे कैसे बचाता है..
मोहब्बत में धोका ही मिले ये तो जरूरी नहीं कुछ रिश्ते बिना इजहार के चंद पलों में ही जिंदगानी जाते है.
कुछ पड़ोसी मुल्क आँखें दिखाते है तो उन्हें शौक से दिखाने दो, गीदड़ की दुआओं से कभी शेर नहीं मरा करते.
उसे देखकर मेरा पूरा दिन बन जाता है, एक वही है जो मेरी सुनी नींदों को अपने ख्वाबों से सजाता है, में कभी कहता नहीं लेकिन उससे बिछड़कर दिल अक्सर मर सा जाता है.
उसने जो जाम अपनी आँखों से पिलाये थे, हम अपना दिल उसी जगह छोड़ आये, अब भी वक्त है मुझे रोक लो ज़मानेवालों, मोहब्बत में काफी बर्बाद हो चुका हूं में, कहीं उसके इंतज़ार में बची हुई ज़िन्दगी भी खत्म न हो जाये.
जवान हूं हिंदुस्तान का मैदान ए जंग छोड़कर में बच तो जाऊंगा, लेकिन मुट्ठी भर गद्दारों से डर गया ये सोचकर जी भी नहीं पाऊंगा.
हवाओं में मोहब्बत है, दिल की धड़कन दीवानी है, तेरे बिना खत्म मेरी कहानी है.
दोस्तों कहा जाता है कि श्रीमान मुन्नवर राणा जी अपनी मां से बहोत ज्यादा प्यार करते थे जिसकी झलक हमें उनकी शायरियों और गज़लों में बखूबी देखने को मिलती है, दोस्तों मुन्नवर राणा जी ने माँ पर नज़्म सुनाई थी जो कि इंटरनेट पर काफी ज्यादा वायरल हुई थी जो कि एक tv show में सुनाई थी जो कि sab tv के "वाह वाह क्या बात है" इस शो ने प्रकाशित किया था इस munawwar rana की shayari की ब्लॉग पोस्ट में हमने उस शायरी को भी जोड़ा है.
दोस्तों मुन्नवर राणा जी की शायरियां और गज़लें तो काफी ज्यादा मशहूर है ही लेकिन उन्होंने कई सारी किताबों को भी प्रकाशित किया है जिनमें से कुछ सबसे मशहूर किताबों के नाम यह रहे 👉 माँ, ग़ज़ल गाँव,पीपल छाँव, बदन सराय, नीम के फूल, सब उसके लिए, घर अकेला हो गया, कहो ज़िल्ले इलाही से, बग़ैर नक़्शे का मकान, फिर कबीर,नए मौसम के फूल.
दोस्तों मुन्नवर राणा के शायरियों और गज़लों के बलबूते पर उनको कुछ बहोत ही अनमोल पुरस्कार भी मिले है जिन्हें पैसों के तराजू में तोलना असंभव है, क्योंकि किसी भी पुरस्कार का कोई मूल्य नहीं होता वो एक अनमोल होता है, दोस्तों दस से भी ज्यादा पुरस्कार पाने वाले ये हिंदुस्तानी के पहले शायर है जिनकी लिस्ट या रही
मुनव्वर राना को मिले हुए कुछ पुरस्कार –
रईस अमरोहवी पुरस्कार 1993, दिलकुश पुरस्कार 1995, सलीम जाफरी पुरस्कार 1997, सरस्वती सम्मान पुरस्कार 2004, मीर ताकी मीर पुरस्कार 2005, ग़ालिब पुरस्कार 2005, डॉ. जाकिर हुसैन पुरस्कार 2005, आलम अफकुफी पुरस्कार, 2005, 2006 इटावा में अमीर खुसरो पुरस्कार, कविता का कबीर सम्मान उपाधि 2006, इन्दोर, मौलाना अब्दुल रज्जाक मलीहाबादी पुरस्कार 2011, ऋतुराज सम्मान पुरस्कार’ 2012, कबीर पुरस्कार, भारती परिषद पुरस्कार, अलाहाबाद, बज्मे सुखन पुरस्कार, भुसावल, अलाहाबाद प्रेस क्लब पुरस्कार, प्रयाग, सरस्वती समाज पुरस्कार, अदब पुरस्कार, मीर पुरस्कार, हजरत अल्मास शाह पुरस्कार, हुमायु कबीर पुरस्कार, कोलकाता, मौलाना अबुल हसन नदवी पुरस्कार, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान पुरस्कार.
Munawwar rana shayari on garibi
बाज़ार में घुसते वक्त माँ कभी खिलौनों की दुकान की और माँ कभी जाने नहीं देती, लेकिन खिलौनों की चाह हमें कभी उस बाज़ार से आगे गुजरने जाने नहीं देती.
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तुम शहरवालों और हम गाँव वालों की सिर्फ इतनी सी कहानी है, तुम अपनों की मय्यत को तक कांधा नहीं देते, और हमैं अपने दुश्मनों की खुशियों में भी अपनी मौजूदगी जतानी हैं.
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Munnawar rana shayari |
हम तो उस धूप में भी तेरी तलाश करते रहें जिस धूप में परिंदे तक नहीं उड़ते.
इस जहां में ये करिश्माई तोहफे से हर औरत नवाजा है, की वो सबकुछ तो भूल जाती है लेकिन अपने बच्चों की पहचान कभी नहीं भूलती.
कम्बखत अमीरों की बस्ती में कोई भी रिश्ता नहीं मानता, और ये गरीबी मिलों दूर बसे चाँद को भी अपना मामा बना देती है.
जब तक है हाथ में जिंदगी की डोर है तबतक ही इस दुनिया में हमारी पहचान है, वर्ना अनगिनत बार देखा होगा पतंगों को कटते हुए.
मिटाना बहोत ही मुश्किल है उसकी यादों को ज़हन से, मुझे उसकी हर बात याद रहती हैं, जो भी करने की कोशिश करता है हमसे बराबरी उसकी कम्बखत सात पुश्तें बर्बाद रहती हैं.
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Munnawar rana ki shayari |
मेरी मोहब्बत पे उंगली उठाने से पहले कभी ये तक नहीं सोचा कि, अगर भाते नहीं तो इतना बड़ा रास्ता तुम्हारे साथ कैसे गुजारते.
हमसे गुंडागर्दी करके हमें मोहब्बत करने को कहते हो, नींद तो बहोत आती है लेकिन आंखे खोल कर सोने को कहते हो.
सज़ा भी बड़ी दर्दनाक है अपने गांव की मिट्टी को छोड़ जाने की, पहले ज़मीन पर लेटते ही सो जाता था, अब नींद की गोलियां लेने पर भी कभी नींद नहीं आती.
मुन्नवर हम तो उसकी खूबसूरती की एक झलक को देखने आए थे, नजाने कितने मिलों सफर तय करके, लेकिन वो समझे कि हमें मेला बहोत पसंद है.
उसने जो हमें खत लिखे थे हम उन्हें खुली किताबों में ही छोड़ आये, उसको सुलझाते सुलझाते हम खुद कई उलझनों में फस आये.
इस मैदान-ए-जंग को छोड़कर में मरने से बच तो जाऊंगा, लेकिन अगर यह खबर अखबारों की सुर्खियां बन मेरी माँ के पास पहुंची तो मैं, जीतेजी मर जाऊंगा.
आज फिर किसी कम्बखत ने माता लक्ष्मी को अपने जिंदगी से निकाल दिया, कूड़ेदान में आज फिर एक मासूम बच्ची मिल गयी.
Munnawar rana ki hindi mai gazal
बेशक है इजाजत अगर तुम्हारे पास कोई कहानी और है, ये जो कटोरे है इनमें अभी भी थोड़ा पानी और है,
नजाने कबसे बैठे है मजहबी मजदूर इन सबको काम दो, एक वीरान पड़ी इमारत बीच शहर में और है, किसी का सब्र किस वक्त टूट जाये किसे पता,
हज़ारों और ज़ुल्म करलो जबतक ये बेजुबानी और है, मुन्नवर ये खुश्क के पत्ते तो इन आँखों में चुभते रहते हैं तेज़ काटों की तरह, दश्त में टहलना अलग बात है और बागबानी और है,
होंगे साथ तो फिरसे वही उक्ताहतें होंगी बदन चौपाल में, उम्र के किस्सों में अभी भी थोड़ी जवानी और है, मुन्नवर हमें तो बस इसी एक एहसास की शिद्दत ने बूढ़ा और लाचार कर दिया कि टूटे-फूटे घर में अपने एक सयानी लड़की और है.
Gazal no 2
इस जिंदगी में हर इंसान को खुलके हंसना मुस्कुराना चाहिये, किसी से सच्ची मोहब्बत है तो उसे लफ़्ज़ों में पिरो कर उसका इजहार होना चाहिये,
जनाब अगर आप दरिया हो तो शायद हमें खतरा है, और अगर आप कोई कश्ती हो तो हमें बेशक पार होना चाहिये,
कुछ नासमझ भी पढ़ने लगें है आजकल आपको तो औरत नहीं बल्कि कम्बखत कोई अखबार होना चाहिये, ए जिंदगी आखिर हमें कबतक यूं दरबदर भटकायेगी टूटा फूटा ही सही लेकिन इंसान का एक घर-बार होना चाहिये,
अपनी खयालों से कहो कि कुछ वक्त की अकेला छोड दो हमें हर मोहब्बत के स्कूल में इतवार की छुट्टी होनी चाहिये.
Munnwar rana Gazal no 3
हमसे बिछड़ना लेकिन कुछ पलों में ही दो जिस्म एक जान हो जाना, किसी दिन ये मेरी पहचान न बन जाये तुम्हारा छोड़ जाना और हमारा बीमार हो जाना,
अपने जिस्म के हर कोने को सौंप देना मुझे और मेरे पढ़ने की कोशिश और आपका अखबार हो जाना, अब जब कभी तेज़ हवाएं चलती है, हमें अक्सर याद आता है आपके हुस्न का दीदार हो जाना,
बडाही मुश्किल है ज़माने में अच्छे बनकर जीना, आसान हैं बुरे बन जाना, जब भी पुरानी बातें याद आती है तब ये भी याद आता है कि किसी के कहीं जाने पर मेरा भी उनके साथ निकल पड़ना,
मेरी जिंदगी का ये हिस्सा मुझे आजभी सिर्फ एक ख्वाब लगता है, तेरा लेट जाना और तेरे लिए मेरा तकिया हो जाना, मुस्कुराते हुए आखों को नीची करते हुए रुक रुक कर चलना और जैसे ही थोड़ा दूर जाऊं तो उसका वापस अपनी रफ्तार में चल पड़ना.
Gazal no 4
कितना भी मिटाने की कोशिश करो हमेशा कुछ न कुछ याद रहता है, शायद इसी लिए सच्ची मोहब्बत करने वाला हमेशा बर्बाद रहता है,
सोने के पिंजरे मैं रहता है जो कैदी वो हमेशा बदनसीब होता है, असल में तो परिंदा खुशनसीब होता है, जो खुले आसमान में पूरे तरीके से आजाद होता है,
हर मुस्कान के पीछे सिर्फ खुशी ही नहीं बल्कि दर्द भी होता है, जिन रास्तों में खेलकर गुजारा है हमने अपना बचपन वो रास्ता हमें आज भी अपनी तरफ बुलाता है,
हमें भी अपने अच्छे पल बखूबी याद है, मुनव्वर हर शक्स को अपना दौर याद होता है.
Munnwar rana ki Gazal zindagi par
अगर ज़मीन पर नहीं होती कोई बारिश तो सारे कुछ पत्थर हो गए होते,
सभी हरे भरे खेत खलियान पेड़ है सभी के सभी खत्म हो गए होते,
तेरी हिफाज़त के वास्ते आँखों के इन बहते हुए आसुओंको रोक रखा है,
वरना मेरे आंसू कबका एक समुन्दर बन गए होते, अगर यही रहते तो अपनों के दिल में ही बने रहते,
और अगर इस मिट्टी को चूम जाते तो कबका आसमान की बुलंदियों तक पहुंच गए होते.
Gazal no 5
कुछ इस तरह जुड़ा हूं कि अब चाह कर भी जुदा हो नहीं सकता,
जिस तरह हो चुका हूं मैं तेरा इससे ज्यादा तेरा हो नहीं सकता, भलेही गम है तेरे दिल में कई सारे लेकिन मैं इतना भी बुरा नहीं कि तुझे इन हालातों में मुस्कुरा नहीं सकता,
तू बस मेरे कंधे से कंधा मिलाकर चल फिर देख क्या कुछ है जो हमारा हो नहीं सकता, आखिरकार मुझे तो मौत ने ही आज़ाद किया वरना मेरी हालत तो ऐसी थी कि कभीभी कैद से आज़ाद नहीं हो सकता,
बस जिंदगी में तेरा ही साथ चाहता हूं फिर देख क्या कुछ मुमकिन नहीं हो सकता.
Gazal no 7
किसी से खुदकी बुराइयां सुनकर कभी अपनी मंज़िल को नहीं बदला जाता,
है जहां में लाखों औरतें इन सबसे इश्क नहीं किया जाता, हम तो बस मामूली से शायर है मुन्नवर हमें ये पेचीदा सियासत नहीं आती,
ज़माने की परेशानियों को सुनकर उन्हें झूठी तस्सली देना नहीं आता, हमें इतनी ज्यादा फुरसत कहाँ है कि तुझे याद करें, कम्बखत लाशें इतनी है कि कंधा तक नहीं बदला जाता,
एक माईने में बदलना ठीक है फिर भी, जितना तुम कुछ पलों में बदलते हो इतना ज्यादा नहीं बदला जाता.
Final words
दोस्तों आपको हर्ज यह मुन्नवर राणा की शायरी की ब्लॉग पोस्ट कैसी लगी हमें कमेंट करके जरूर बताएं और हमें ये भी बताएं कि इस ब्लॉग पोस्ट में से आपको सबसे ज्यादा कौनसी शायरी या ग़ज़ल पसंद आई, दोस्तों आप इस ब्लॉग पोस्ट को उन शायरी के दीवानों तक भी पहुंचा सकते हो जो कि मुन्नवर साहब के कदरदान है. यहां तक पढ़ने के लिए शुक्रिया.
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